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GHAZAL

हमें कहां उनके आने की ख़बर होती है!
आ जाएं गर तो फिर सेर नज़र होती है!

मोहब्बत तो है ही मेरी ज़ात का जुज़्व (हिस्सा)

देख कर उनको यह बा अंदाज़ ए दीगर होती है

न दिल को जला इतना की झुलस जाए तेरा हुस्न

आह जब दिल से निकलती है तो शरर होती है

(चिंगारी)

उनको भला कैसे दिल से निकालोगे अंसार

मलका ए सल्तनत भी कहीं शहर बदर होती है

अंसार अख़्तर

****

हमसफर

ना तो आसमां से ना किसी कायनात से निकला

तू वो चांद है जो मेरे खयालात से निकला

चखा ही ना था कभी दर्द ए दिल का मज़ा

यह लुत्फ़ तो कल हिजर की रात से निकला

दुख तुझको भी है मुझ से बिछड़ जाने का

यह राज़ तेरी आंखों की बरसात से निकला

अंसार” दर्द ए दिल को ही हमसफ़र बनाओ

अपना यही खज़ाना तो
एक महकती वारदात से निकला

(अंसार अख़्तर)

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